शाकाहारी खंजर

Shakahari Khanjar By Ved Prakash Sharma (Part 2 of Katil Ho To Aisa)








एक बार किसी ने मुझसे पूछा था कि आपको हर बार अपने उपन्यास के लिए ‘टंच’ टॉपिक कहां से मिल जाते हैं। यह सवाल शायद इसलिए उठा था क्योंकि आप जानते ही हैं कि मेरे उपन्यास के टॉपिक लीक से हटकर और एकदम नए होते हैं। इस बाबत कहना चाहूंगा, टॉपिक चाहे उपन्यास का हो या फिल्म का, हमारे आस-पास घटनाओं के रूप में बिखरे पड़े होते हैं, जरूरत होती है उन्हें समझने और संवारने की। मैं यही करता हूं। मैं अपनी सटीक निगाह टिकाए रखता हूं अपने आस-पास, वहीं से मिलता है मुझे टॉपिक। हां, एक बात और। आपके जो ढेरों पत्र मुझे मिलते हैं, कई दफा उनमें से कोई पाठक भी मुझे अपनी तरफ से विषय सुझा देता है। मैं आपके पत्रों को गौर से पढ़ता हूं। खास पत्रों पर मनन भी करता हूँ। किसी पाठक को मेरे किसी उपन्यास में अपने आइडिये की झलक भी मिली हो सकती है। आप जानते हैं कि-वेद मौलिक लिखता है और उसकी स्टाइल हर उपन्यास की खास अंदाज वाली होती है। तब ही तो आप मेरे उपन्यासों को डूबकर पढ़ते हैं और आप खुद को उपन्यास के पात्रों के आस-पास पाते हैं। शाकाहारी खंजर के बारे मे कुछ बातें जरूर कहना चाहूंगा ! पहली बात-आप जानते हैं मैं अपने उपन्यासों में आमतौर पर ‘सैक्स’ को स्थान नहीं देता परन्तु इस उपन्यास के कथानक का ताना-बाना कुछ ऐसा बना है कि कुछ ‘बोल्ड सीन’ लिखने पड़े। उसे मैं ‘सैक्स’ तो नहीं कहूंगा परन्तु इतना जरूर कहूंगा कुछ सीन मुझे अपनी आदत के विपरीत लिखने पड़े हैं। यह सोचकर कि-वह लेखक ही क्या जो कहानी को उसके मूड के मुताबिक न लिख सके। आप पढ़े और जाचें कि वे सीन आवश्यक थे या नहीं और मैं कथानक के साथ न्याय कर सका अथवा नहीं ? दूसरी बात-यह उपन्यास मेरे अब तक लिखे गये अन्य उपन्यासों से अलग इसलिए है क्योंकि थ्रिल के अलावा इसमें ‘सेन्टीमेन्ट्स’ की भी बहुतायत है ! एक ऐसे किरदार की बड़ी ही मार्मिक कहानी है ये जिसे ‘अपनों’ से प्यार,विश्वास, सहानुभूति और अपनत्व की सख्त जरूरत थी लेकिन मिला धोखा, घृणा अविश्वास और तिरस्कार। बुरी तरह तिलमिला उठा वह। उसकी तिलमिलाहट को आप इतने नजदीक से महसूस करेंगे जैसे आपकी अपनी तिलमिलाहट हो। मुझे पूरा विश्वास है उस तिलमिलाहट में जो कदम वह किरदार उठाता है उसे पढ़कर न सिर्फ आप रोमांचित हो उठेंगे बल्कि आपका पूरा-पूरा समर्थन भी हासिल होगा उसे। उपन्यास पढ़ने के बाद इस सम्बन्ध में अपनी निष्पक्षराय से मुझे अवश्य अवगत करायें। यहां मैं आपको बताना चाहूंगा कि ‘कातिल हो तो ऐसा’ तथा ‘शाकाहारी खंजर’ का अंतिम पार्ट ‘मदारी’ अवश्य पढ़े, जो इसी सैट में पुर्नप्रकाशित हो चुका है, तभी आप पूरी कहानी का पूरा लुप्त उठा सकेंगे।


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